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Thursday 9 August 2018

72 सालो से मिली नाइंसाफी के खिलाफ मुसलमानों को अब अपनी क़यादत की जानिब सोचना चाहिए।

आज मुसलमानों के खस्ताहाली की सबसे बड़ी ज़िम्मेदार कांग्रेस पार्टी है, जिसने अज़ादी के तुरन्त बाद मुसलमानो को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा बनाए रखने के लिए लगातार जद्दोजहद करती रही है।
26 जनवरी 1949 को भारत मे संविधान को लागू किया गया। संविधान के लागू होने के डेढ़ साल बाद ही, भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने 1933 से अंग्रेज़ों के दौर से मिलने वाले आरक्षण पर धार्मिक पाबन्दी लगाकर, अपनी मुस्लिम विरोधी पालिसी पर मुहर लगाई।
कांग्रेस पार्टी की सरकार ने संविधान की धारा 341 में संशोधन करते हुए दलित मुसलमानों को आरक्षण से मिलने वाले लाभ से वंचित कर दिया। जब इतने से भी जवाहर लाल नेहरू संतुष्ट नही हुए तो एक बार पुनः 23 जुलाई 1959 में संविधान में संशोधन करते हुए शर्त लगाई कि अगर मुसलमान धर्मान्तरण कर हिन्दू मज़हब अख्तियार करता है तो उसे आरक्षण का लाभ दिया जाएगा।
आज संघ परिवार मुसलमानो और ईसाइयों पर धर्मान्तरण का आरोप लगाते हैं, परन्तु 1959 में संविधान में हुए संशोधन से प्रतीत होता है कि जवाहर लाल नेहरू की सरकार आरक्षण का लाभ देने के नाम पर हिन्दू धर्म अपनाने का दबाव मुसलमानों पर बना रही थी।
अगर आज मुसलमानों को धारा 341 का लाभ मिलता तो आज़ादी के बाद से अब तक हज़ारो विधायक, सैकड़ो सांसद, सैकड़ो आईएएस, आईपीएस और सरकारी नौकरी के हर क्षेत्र में लाखो मुसलमानों की नुमाइंदगी होती।
इतना ही नहीं बल्कि जहां जहां मुसलमानो का बड़ा व्यापार था वहां-वहां दंगे-फसाद व लूट मार कराकर मुसलमानों को आर्थिक तौर पर कमज़ोर कर दिया गया।
विपक्ष द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप से बाहर निकलने के लिए और हिन्दू वोटर को साधने की नीयत से जवाहर लाल नेहरु ने बाबरी मस्जिद का ताला खुलवा दिया, जिसके बाद देश मे साम्प्रदायिकता और बढ़ गई, जिसके बाद आखिर बाबरी मस्जिद को शहीद कर दिया गया।
मुसलमानों के शैक्षित हालात पर बात करते हुए कहा कि मुसलामानों को कमज़ोर करने का सिलसला यहां भी नही रुका। अपने बुज़ुर्गों की पालिसी पर अमल करते हुए इसी कांग्रेस ने ही मुसलमानो के माथे पर दहशतगर्दी की मुहर लगाया। जिससे मुस्लिम नौजवान उच्च शिक्षा के लिए बड़े शहरों में जाने से कतराने लगे। जिसका नतीजा ये हुआ कि मुस्लिम शिक्षा के क्षेत्र में भी पीछे होते चले गए।
मुसलमान 72 सालों से सेकुलरिज्म के नाम पर वोट देता चला आ रहा है, लेकिन आज वो समाज के किस पायदान पर है, इसका अंदाज़ा सच्चर व रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट में लगाया जा सकता है।
72 सालो से मिली नाइंसाफी के खिलाफ मुसलमानों को अब अपनी क़यादत की जानिब सोचना चाहिए। तथा सेक्युलरिज़्म के नाम पर वोट लेने वाले सभी दलों से अपनी बदहाली पे सवाल करना चाहिए।

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