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Monday 16 July 2018

नाम निहाद सेक्युलर तंज़ीमों में मुस्लिम रहनुमाओं का वुजूद - ज़िम्मेदारी और मक़सद क्या है ? अनवर दुर्रानी प्रदेश महासचिव राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल

नाम निहाद सेक्युलर तंज़ीमों में मुस्लिम रहनुमाओं का वुजूद - ज़िम्मेदारी और मक़सद क्या है ?

ये मौज़ू निहायत ही अहमियत रखता है और हर मुस्लमान वोटर को इस बात को समझना लाज़िम है !
एक मिसाल के ज़रिये इस बात को आसानी से समझा जा सकता है !
अगर आप लोगों ने तीतर का शिकार किया , देखा या सुना है ! तो शिकारी के पास एक पालतू तीतर हुआ करता है जिसको शिकारी बादाम काजू और मेवा खिलाता है और बड़ी मोहब्बत से उसको पालता है !
और शिकार के दिन शिकारी अपने इस पालतू और वफादार तीतर को शिकारगाह यानी जंगल मे ले जाकर रख देता है ! और उसके चारों तरफ जाल बिछा देता है, शिकारी के इशारा करते ही ये तीतर ज़ोर ज़ोर से बोलना शरू कर देता है ! जिसकी आवाज़ सुनकर इलाक़ाई तीतर महसूस करते हैं की हमारा कोई भाई आया है या परेशानी मैं है और वह इस पालतू तीतर की मदद को भाग कर इसकी तरफ रुजू करते हैं !
लेकिन उसके चारों तरफ बिछे जाल मैं फस जाते  हैं बस यही तो मक़सद था शिकारी और उसके पालतू तीतर का !
शिकारी तमाम मासूम तीतरों को जमा करता है और अपने पालतू तीतर को भी साथ लेकर घर आ जाता है अपने पालतू तीतर को दोबारा उसकी ग़िज़ा बादाम - काजू - मेवा और शफ़क़्क़त से नवाज़ता है लेकिन इसी तीतर की निगाहों के सामने इसकी अपनी क़ौम यानि वह तीतर जिनको यह पालतू तीतर अपने मालिक के इशारे पर फसवा कर लाया है , ज़िबाह किया जाता है !
और लज़ीज़ पकवान बनाए जाते हैं लेकिन ये पालतू तीतर अपनी क़ौम के ज़िबाह होने का मातम नहीं करता बल्कि बड़े आराम से अपने पिंजरे मैं बैठकर अपनी शाही ग़िज़ा का लुत्फ़ उठाया करता है इसको अपनी क़ौम के ज़िबाह होने की कोई परवाह नहीं फ़िक्र है तो बस अपने बादाम काजू और ग़िज़ा की , क़ौम मरे तो मरे  तबाह हो तो हो जाए उसको क्या ? जब दोबारा शिकार का दिन आएगा तो यही पालतू तीतर फिर बोलेगा और फिर अपनी क़ौम को शिकारी के जाल मैं फसवाएगा ।
कौन हैं ये तीतर ?
यह तीतर है आज़म खान , यह तीतर है नसीमुद्दीन सिद्दीकी , यह तीतर है सलमान खुर्शीद और इन जैसे ही सैकड़ों तीतर हैं जो हर इंतेखाबात मैं मजमा लगाने और मुसलमानों को अपने अपने शिकारियों के जाल मैं फसवाने के लिए ज़िंदा हो जाते हैं और इंतेखाबात के बाद जब क़ौम के ऊपर ज़ुल्म ढाया जाता है तो यही तीतर अपनी ग़िज़ा का लुत्फ़ ले रहे होते हैं और क़ौम के मसाइल पर गूंगे हो जाते है !
मुसल्मानों गौर करो आखिर क्या हासिल हुआ है तुम्हें इनकी रहबरी से ज़िंदगी इनकी बदली आखिर तुम्हें क्या हासिल हुआ ?
और आखीर मैं यह भी बताता चलूँ की यह तीतर बे औलाद नहीं हैं बल्कि साहिबे औलाद हैं , हर गली मोहल्ले मैं इन तीतरों की औलादें घूमती आपको मिल जाएंगी जो सिर्फ इलेक्शन मैं ही ज़िंदा होती हैं और फिर जब क़ौम ज़ुल्म का शिकार हो रही होती है तो ये किसी क़ब्रस्तान के ऊँचे दरख़्त पर चिमगादड़ की मानिंद लटक जाते हैं और इनकी जुबां फिर बस नेताजी के जन्मदिन की मुबारकबाद या फिर किसी और मुबारक बाद के लिए ही खुलती है क़ौम के मसाइल के लिए नहीं !  इनकी सियासत का मक़सद क़ौम के मसाइल का हल नहीं बल्कि महज़ बड़े तीतरों के साथ फोटो और अखबारों की सुर्खियां बटोरने तक महदूद है !
समझदार को इशारा काफी और ज़ेहनी मखलूजों  के लिए किताब भी लिखना फ़िज़ूल है

                              अनवर दुर्रानी
                            जनरल सेक्रेटरी
                    राष्ट्रिय ऊलेमा काऊंसिल 
                               उत्तर प्रदेश

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