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Sunday 29 July 2018

संविधान कि धारा 341 में धार्मिक प्रतिबन्ध ? आज़मगढ़ मेल

संविधान कि धारा 341 में धार्मिक प्रतिबन्ध ?

संविधान समिति ने भारत को एक सम्प्रभु ,समाजवादी तथा धर्म निरपेक्ष गणतंत्र बनाया था संविधान निर्माताओ ने देश के अछूतो ,दलितो एवं कमज़ोर वर्ग के जीवन अस्तर को ऊपर उठाने के लिए अंग्रेज़ सरकार के जरिये बनाये गए कानून के भांति उन्हें अनुसूचित जाति सम्मलित करके उनकी जन संख्या के अनुपात में विधान मण्डल , सरकारी सेवाओ और शैक्षिक संस्थाओ में उनका समुचित प्रतिनिधि सुनिश्चित करने के लिए संविधान की धारा 341 के तहत आरक्षण की व्यवस्था की थी तथा अनुसूचित जाति की सूची में सभी धर्मो के मानने वाले दलित समाज के लोग सम्मलित थे / संविधान लागू होने के बाद प्रधानमंत्री पण्डित ज्वाहर लाल नेहरू ने संविधान की अनुछेद 341 की धारा का सहारा लेकर 10 अगस्त 1950 को एक अध्यादेश पास कराया कि अनुसूचित जाति के लोगो में केवल उन्ही को आरक्षण तथा अन्य सुविधाओ का लाभ मिलेगा जो हिन्दू हो अनुसूचित जाति के किसी ऐसे व्यक्ति को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा जो गैर हिन्दू है , सिख समुदाय के दलितो ने इस असंवैधानिक अन्याय पूर्ण एवं दमन कारी के विरुध्द अपने अधिकार की लड़ाई लड़ी तब 1956 में इस अध्यादेश में संसोधन करके हिदू व सिख होना अनिवार्य करार दिया गया पण्डित ज्वाहर लाल नेहरू गैर हिन्दू गैर सिख दलित जाति के लोगो के हितो का गला घोटने से ही संतुष्टि नहीं हुई वर्ष 1958 में पुनः इस अध्यादेश को संसोधन कराते यह बढ़ोतरी भी कि जिन दलितो के पूर्वज कभी हिदू धर्म से निकल गए थे यदि वह पुनः हिन्दू धर्म स्वीकार करे तो उन्हें भी आरक्षण व अन्य सुविधाये मिलेंगी 1990 में इस अध्यादेश में एक संसोधन करके इसमें बौध्द दलितो को भी सम्मलित कर दिया गया इस प्रकार मुस्लिम एवं ईसाई दलित आज भी अपने आरक्षण के संवैधानिक अधिकार से वंचित है जिसे असंवैधानिक तरीके से छीन लिया गया है जो कि संविधान की धारा 14 ,15 ,16 और 25 के विपरीत तथा असंवैधानिक अन्याय पूर्ण एवं भारत के संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारो का हनन और संविधान की मंशा की विरुध्द है/
आज़मगढ़ मेल

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