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Friday, 13 July 2018

क्या महज़ मुस्लिम नुमाइंदे इलाक़ाई असेंबली या पार्लियामेंट मैं भेजने से मुस्लिम मसाइल का हल मुमकिन है ? :-अनवर दुर्रानी प्रदेश महाचिव राष्ट्रिय उलेमा कौंसिल

क्या महज़ मुस्लिम नुमाइंदे इलाक़ाई असेंबली या पार्लियामेंट मैं भेजने से मुस्लिम मसाइल का हल मुमकिन है ?
क्या किसी क़ौम के मसाइल का हल उसकी अपनी क़ौम के नुमाइंदे ही कर सकते है ? कोई और नहीं ? क्या हमारे पिछड़ेपन के पीछे हमारी असेंबली और पार्लियामेंट मैं कम तादाद मे नुमाइंदगी है ?
ऐसे हज़ार सवाल हैं जो आम अवाम के ज़ेहन मैं उठते हैं लेकिन मेरे नज़दीक इन तमाम सवालात का वाहिद जवाब है की #नहीं लेकिन इस #नहीं को समझने के लिए आपको थोड़े सब्र और यक़ीन का इस्तेमाल करना होगा
आज हिंदुस्तान को आज़ाद हुए कमोबेश 70 साल गुज़र चुके हैं और आज़ादी के इन 70 सालों मैं हिंदुस्तान की कोई वाहिद सियासी पार्टी ऐसी नहीं है जिसको हमारी क़ौम ने अपना वोट ना दिया हो या ज़िंदाबाद की दुआओं से न नवाज़ा हो ! कांग्रेस हो या तृणमूल कांग्रेस, सपा हो या बसपा , जनतादल हो या लोकदल ! मुसलमान ने हर दलदल मैं वोट डाला है हर पार्टी को आज़माया है और हर पार्टी से मुस्लमान  नुमाइंदों को इस तवक़्क़ो के साथ असेंबली और पार्लियामेंट मैं भेजा की शायद अब इस क़ौम के मसाइल का हल निकलेगा शायद अबकी बार हमारे नौजवानों को सरकारी नौकरियों से नवाज़ा जाएगा शायद अबकी बार हमारे लिए कोई तालीमी मंसूबा तैयार होगा शायद अबकी बार मुस्लमान क़ौमी फसादात की साजिश का शिकार होने से मेहफ़ूज़ रहेगा और ऐसी ही सैकड़ों ख्वाहिशात के साथ हर इंतेखाबात मे मुस्लिम क़ौम ने आँखों मैं ख्वाब सजाए ; लेकिन आज कमोबेश 70 साल गुज़र जाने के बाद भी मुस्लमान उस रेगिस्तानी पौधे की तरह है जो तमाम साल बारिश का इंतज़ार महज़ इस तवक़्क़ो के साथ करता है की इस बरस की बारिश उसको सर सब्ज़ कर देगी लेकिन बारिश आती है तो उसको दो घूँट पानी इसलिए दे जाती है की महज़ वो अपनी हयात को बरक़रार रख सके
आज मुसलामानों के जो हालात हैं दर हकीकत उसके लिए मुसलमान नुमाइंदों की काम तादाद नहीं बल्कि अवाम की सियासी सूझ बूझ की कमी है मुस्लिम नुमाइंदे तो पहली असेंबली और पार्लियामेंट से मौजूदा वक़्त तक हर दौर में ही रहे  है लेकिन उनकी मौजूदगी से क़ौम को हासिल क्या हुआ ? और अगर नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुआ ? क्या आप समझना नहीं चाहते
आपको यह बात तस्लीम करनी ही होगी की किसी भी क़ौम के मसाइल का हल उनके नुमाइंदे नहीं बल्कि उनकी क़यादत करती  है और इस बात को समझने के लिए आपको तारिख का मुताला करना लाज़िम है
आज़ादी के बाद तमाम क़ौमें कांग्रेस की क़यादत यानि ब्राह्मणों की क़यादत मे कांग्रेस का  झंडा उठाती रहीं लेकिन कांग्रेस के दौरे हुकूमत ब्राह्मणो के सिवा दीगर क़ौमों का कोई भला नहीं हुआ पिछड़ा और पिछड़ गया और दलितों का सांस लेना और मुहाल हो गया ठीक जैसे आज मुसलामानों के हालात हैं ! उस दौर में भी पिछड़ों और दलितों के नुमाइंदे MLA और MP की शक्ल मे मौजूद थे लेकिन इक़्तेदार ब्राह्मणों के हाथ मैं था तो फवाइद भी ब्राह्मणों को ही हासिल हुए मुस्लिम दलित या पिछडो को नहीं ! लेकिन इन लोगों ने सियासी शऊर का मुज़ाहिरा किया और नुमाइंदगी पर इक्तिफा न करते हुए क़यादत की तरफ क़दम बढ़ा दिया !
दालित मुआशरे ने जनाब कांशीराम और बहिन मायावती की क़यादत मैं बहुजन समाज पार्टी , जाट मुआशरे ने लोकदल , और पिछड़ों ने मुलायम सिंह , लालू यादव और दीगर सियासी लीडरान की क़यादत तस्लीम करते हुए इलाक़ाई ऐतबार से मुख्तलिफ सियासी जमातों को अंजाम दिया और इनकी इसी सोच के ज़ेरे असर जो तब्दीलियां उनके मुआशरे मैं आई हैं उनका ज़िक्र 50 साल भी करता रहूं तो नाकाफी है
मैं मुबारक बाद देता हूँ अपने दलित और पिछड़े ब्रादराने वतन को की उन्होंने अपने सियासी शऊर के ज़ेरे सबब हिंदुस्तान मैं इज़्ज़त का मुक़ाम हासिल किया और सियासत मैं अपना सिक्का मनवाते हुए ग़ुलामी का तौक़ गले से उतार फेंका और अपनी क़ौम की लड़ाई खुद लड़ते हुए कामयाबी हासिल की !
आज यही वाहिद रास्ता हिंदुस्तान के मुसलमानों के सामने भी है हमें नुमाइंदगी के नशे से बहार आना ही होगा और अपनी क़यादत को मज़बूत करना होगा पिछड़ों और दलितों से सबक़ हासिल नहीं किया तो अंजाम सिवाए दर्द ,बर्बादी और ज़िल्लत के कुछ हासिल नहीं होगा यह मौज़ू तफ्सील चाहता है और आइंदा तफ्सीली गुफ्तगू करूंगा और मुमकिन हुआ तो लाइव भी रहूंगा लेकिन सवाल जो शरू मैं उठा था उसका जवाब देता चलूँ और यह थोड़ा सख्त है तो कुछ हज़रात को यह तंज़ भी महसूस हो सकता है लेकिन मेरी नियत इस्लाह है तंज़ नहीं
याद रखिये किसी भी पार्टी के मुन्तख़ब नुमाइंदे उस पार्टी के क़ायद की रज़ा के मोहताज होते हैं क़ायद की हाँ तो हाँ , और ना तो ना !
हमने अपने बोहत से नुमाइंदे बसपा मे भाजपा की शिकस्त के नज़रिये और अपने मसाइल के हल के लिए चुन कर असेंबली मैं बसपा के ज़ेरे परचम भेजे लेकिन जब उस ही बसपा ने उल्टा भाजपा से ही हाथ मिलाकर हुकूमत बनाई तो क्या हमारे नुमाइंदों ने बसपा से इस्तीफ़ा दिया ? जवाब है नहीं क्यूंकि उन्होंने क़यादत के सामने सर झुका दिए और अपनी क़ौम के जज़्बातों को ठोकरों मैं कुचल दिया लेकिन बसपा ने उस हुकूमत मैं अपनी क़ौम की हद्तल इमकान मदद करी  पुलिस, रेलवे, बैंक और दीगर तमाम मेहकमात मैं अपनी क़ौम के नौजवानों को मुलाज़मत से नवाज़ा ज़रा दिल पर हाथ रखकर बताईये नुमाइंदे हमारे थे लेकिन उनका फायदा दलित मुआशरे को मिला हमें नहीं क्यों ? क्यूंकि नुमाइंदगी अहमियत नहीं रखती क़यादत अहमियत रखती है नुमाइंदे हमारे शुमार हुए और बसपा ने हुकूमत मैं हिस्सेदारी ली नुमाइंदे हमारे और फायदा दलित भाईयों का !
कया ये सियासी शऊर आपको नहीं होना चाहिए ?

ब्रादराने मिल्लत उतार फेंको ग़ुलामी का तौक़ और अपनी क़यादत को मज़बूत करो राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल आपका इस्तक़बाल करती है

आपका कोई सवाल या तफ्सील आपको चाहिए तो कमेंट्स या इनबॉक्स मैं आज़ादी के साथ पूछ सकते हैं मैं आइंदा पोस्ट मैं इंशाल्लाह ज़रूर जवाब दूंगा !

                          अनवर दूर्रानी
                         प्रदेश महासचिव
                     राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल
                            उत्तर प्रदेश
                         Watsapp
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