Breaking

Saturday 8 September 2018

कही ना कही उनकी खामोशि उन जालिमो की हिमायत में खड़ी नज़र आ रही थी !

शहबाज़ रशादी

आज़मगढ़! हम उस शहर ज़िले के रहने वाले है जिस शहर को सन 2008 में आतंकगढ़ -आतकंवाद की नर्सरी का खिताब दिया गया था यानी कि उत्तर-प्रदेश में स्थित ज़िला आज़मगढ़ !
19 सितम्बर 2008 दिल्ली में बटला हाउस फ़र्ज़ी इनकाउंटर हुआ जिसमें हमारे शहर के 2 नौजवानों को जो कि वहाँ पढाई करने गए थे उन्हें इंडियन मुजाहिदन नामक संगठन का आतंकवादी बता कर मार दिया गया था !
उस इनकाउंटर के बाद हमारे शहर का आलम ये हो चुका था कि कोई भी नौजवान अपने घरों से बाहर नही निकलता था ज़्यादातर मग़रिब बाद के वक़्त उन्हें ये खौफ होता था कि कही कोई बिना नम्बर प्लेट लगी गाड़ी से सादी वर्दी में कुछ लोग आएंगे और हमें उठा ले जाएंगे और दूसरे दिन पुरी दुनिया के सामने आतंकवादी बना कर पेश कर देंगे' हालात इतने नाज़ुक थे कि STF-ATS और उनके साथ लोकल पुलिस वाले जब चाहते दिन हो या रात मुसलमानो के घरों में घुस जाते और घरों में मौजूद औरतो के साथ बदसलूकी करते भद्दी-भद्दी गालिया देते घर मे कोई नौजवान मौजूद हो तो उसे उठा ले जाते और खास कर उस गांव को टारगेट किये हुए थे जिस गांव के दोनों लड़के मुठभेड़ में मारे गए थे !

हर तरफ डर और खौफ के साये तले लोग दबे हुए थे किसी के अंदर कुछ बोलने या करने की जुर्रत भी ना होती थी ! ज़्यादा अफसोस उस वक़्त हुआ की ये जो नाम निहाद सेक्युलर जमाते या राजनीतिक पार्टियां है इन सब ने अपनी जुबान पर पट्टी बांध ली थी और खामोशी इख्तियार कर ली थी और कही ना कही उनकी खामोशि उन जालिमो की हिमायत में खड़ी नज़र आ रही थी !

ऐसे नाज़ुक हालात में जब किसी ने आवाज़ नही उठाई हमारे हक़ में बोलने की भी जुर्रत ना कि तब जाकर मौलाना आमिर रशादी मदनी साहब ने अकेले आवाज़ लगाई और मैदान ने खड़े हो गए सरकारी जालिमो के खिलाफ  और इंसाफ की लड़ाई शुरू कर दी और बटला हाउस फ़र्ज़ी इंकाउंक्टर में मारे गए नौजवानों के इंसाफ के हक़ में अपने ज़िले आज़मगढ़ पर लगे आतंकगढ़ के नाम को मिटाने के हक़ में आज़मगढ़ से लेकर दिल्ली तक तारीखी मुज़ाहेरा किया जिसमें पूरी ट्रेन बुक कर ली गयी और दिल्ली के जंतर मंतर से इंसाफ की आवाज़ बुलंद की और आज भी बटला हाउस फ़र्ज़ी इनकाउंटर के इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे है !!
और न्यायिक जांच की मांग कर रहे है !

No comments:

Post a Comment