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Monday 2 October 2017

दिल का मामला है..... हो न जाए कहीं फेल



नई दिल्ली: बड़ों के साथ-साथ कम उम्र के लोगों में भी बढ़ते हृदय रोगों पर चिंता जाहिर करते हुए डॉक्टरों एवं विशेषज्ञों ने लोगों को इसके लक्षणों को नजरअंदाज न करने और अपनी जीवनशैली में सुधार लाने की सलाह दी है. भारत में मृत्यु का एक मुख्य कारण हृदय से जुड़ी बीमारियां हैं. इसकी वजह दिल संबंधी बीमारियों के इलाज की सुविधा न मिलना या पहुंच न होना और जागरूकता की कमी है. हालिया आंकड़ों के अनुसार 99 लाख लोगों की मृत्यु गैर - संचारी रोगों (नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों) के कारण हुई. इसमें से आधे लोगों की जान हृदय रोगों के कारण हुई.
दूसरी ओर हृदय रोगों में, हार्ट फेल्यर (दिल का कमजोर हो जाना) भारत में महामारी की तरह फैलता जा रहा है जिसकी मुख्य वजह हृदय की मांसपेशियों का कमजोर हो जाना है. आज 29 सितंबर को ‘वर्ल्ड हार्ट डे’ के मौके पर विशेषज्ञों ने कहा कि अब तक हार्ट फेल्यर की समस्या पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था. इसलिए लोग इसके लक्षणों को पहचान नहीं पाते थे. इस समस्या के तेजी से प्रसार का एक कारण यह भी है.
‘कार्डियोलोजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया’ के अध्यक्ष डॉ. शिरीष (एम. एस.) हिरेमथ ने बताया, ‘‘भारत में तेजी से हार्ट फेल्यर के बढ़ते मामलों को देखते हुए, इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत भी बढ़ती जा रही है. हम सभी हितधारकों को सामुदायिक स्तर पर बीमारी के प्रति जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है.’’ उन्होंने बताया कि हार्ट फेल्यर को अमूमन हार्ट अटैक ही समझ लिया जाता है.
डॉ शिरीष ने कहा, ‘‘हार्ट फेल्यर को समझना जरूरी है, अक्सर लोगों को लगता है कि हार्ट फेल्यर का तात्पर्य दिल का काम करना बंद कर देने से है जबकि ऐसा कतई नहीं है. हार्ट फेल्यर में दिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं जिससे वह रक्त को प्रभावी तरीके से पंप नहीं कर पाता. इससे ऑक्सीजन व जरूरी पोषक तत्वों की गति सीमित हो जाती है.’’ कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सी ए डी), हार्ट अटैक, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट वाल्व बीमारी, कार्डियोमायोपैथी, फेफड़ों की बीमारी, मधुमेह, मोटापा, शराब का सेवन, दवाइयों का सेवन और फैमिली हिस्ट्री के कारण भी हार्ट फेल होने का खतरा रहता है.
डॉ. शिरीष ने कहा कि इस बीमारी के लक्षणों के प्रति जागरूकता बढ़ाना बहुत जरूरी है. उन्होंने बताया कि सांस लेने में तकलीफ, थकान, टखनों, पैरों और पेट में सूजन, भूख न लगना, अचानक वजन बढ़ना, दिल की धड़कन तेज होना, चक्कर आना और बार-बार पेशाब जाना इसके प्रमुख लक्षण हैं.
दिल्ली ‘एम्स’ के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. संदीप मिश्रा ने कहा, ‘‘पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में यह बीमारी एक दशक पहले पहुंच गई है. बीमारी होने की औसत उम्र 59 साल है. बीमारी की जानकारी न होना, ज्यादा पैसे खर्च होना और बुनियादी ढ़ांचे की कमी के कारण हार्ट फेल्यर के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है.’’ डॉ मिश्रा के अनुसार, वर्ष 1990 से 2013 के बीच हार्ट फेल्यिर के मामलों में करीब 140 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है. जीवनशैली में बदलाव एवं तनाव के कारण युवकों भी तेजी से इसकी चपेट में आ रहे हैं.
अमेरिका और यूरोप की तुलना में भारत में रोगी 10 साल युवा हैं. डॉ मिश्रा ने कहा कि जीवनशैली में बदलाव कर इस बीमारी से बचा जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि इस बीमारी के लक्षणों को नजरअंदाज न करने और समय रहते बीमारी का पता लगा कर इलाज शुरू करने एवं जीवनशैली में बदलाव से इस बीमारी का खतरा दूर हो सकता है.

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