मुबारक हो बादशाह साहब,
अज़ीम की मौत ने इस मुल्क को और अज़ीम बना दिया।
मुबारक हो मुल्क के हुक्मरानों/तानाशाहों आपका बोया हुआ ज़हर का बीज अब एक तनावर दरख़्त बन चुका है जो अपने साय में आने वाले हर शख्स को ज़हनी अपंग और अख़लाक़ी बीमार बना रहा है। नफरत की फसल इंसानियत को खाद की तरह खा रही है और आपको खून और हैवानियत से भरे हुए फल दे रही है जिसे आप अपनी हुक्मरानी और हुकूमत के एवज हिंदुस्तानियों में तक़सीम कर रहे हैं। यक़ीनन आपके भी घर में बच्चे होंगे और उस औरत के घर मे भी बच्चे होंगे जो अज़ीम के कत्ल पर कह कर गयी है कि अभी और ऐसों को मरवाऊंगी, इन बच्चों को फख्र से बताइयेगा की कैसे आपने 8 साल के एक बेगुनाह बच्चे को नफरत और फिरकपरस्ती के नाम पर मौत के घाट उतार दिया था। मुल्क की राजधानी में ये क़त्ल इंसानियत, क़ानून और दस्तूर का क़त्ल है। नेशनल शेम है। पर आप खुश रहिये की ये क़त्ल भी आपकी हुकूमत के लिए ईंधन साबित होगा, यक़ीनन तारीख आपको नफरत और फिरकपरस्ती के लिए याद रखेगी। इस मुल्क को आपने कहां से कहां पहुंचा दिया। हुकूमत तो आज नही कल चली जायेगी पर अज़ीम की मौत की ज़िम्मेदारी आपके कांधे से कहां जाएगी। मुबारक हो, आपके परवरिश करदा नफरत के सौदागर फिर बहुत खुश हैं कि आज अज़ीम के कत्ल से मुल्क के साथ आप भी और अज़ीम हो गए।
जो चुप रहेगी ज़बाँ ए खंजर,
लहू पुकारेगा आस्तीन का।
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