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Sunday 18 November 2018

राष्ट्रिय उलेमा काउंसिल महज़ सियासी तंज़ीम नहीं मदरसा है , जहाँ बशर को इंसान बनने की तालीम और तरबियत दी जाती है ! बदगुमानियां यहां क़याम नहीं करतीं ! हमारी सियासत इंसानी फलाह और आख़िरत के मद्दे नज़र है , महज़ दुनियावी ओहदे हमारा मक़सद नहीं ! और जो इस उसूल का मुनकिर हो वो राष्ट्रिय उलेमा काउंसिल का सिपाही नहीं !

नवंबर 13 शाम 5 बजे मैंने अपने ओहदे सुबाई -  मोतमीदे आला ( state - Secretory General ) से अचानक इस्तीफ़ा दिया तो कुछ रफ़ीक़ों को शदीद अहसासे तकलीफ हुआ ! और कुछ ने नाराज़गी का भी इज़हार किया ! व्हाट्सएप्प और मैसेंजर पर मुख्तलिफ सवालात गर्दिश करने लगे , लिहाज़ा लाज़िम और मुनासिब है की उनका मुख़्तसर जवाब दे दूँ !
सियासी तंज़ीमों का निज़ाम है की जब भी कोई कारकुन या शक्सियत अपनी पार्टी तब्दील करे तो मेज़बान तंज़ीम उसके ओहदे का एडजस्टमेंट उसकी शक्सियत या सलाहियत के ऐतबार से करती है ! ये सियासी तंज़ीमों की दूरंदेशी और एक तरह से कारकुन के साथ इन्साफ और इकराम भी होता है ! लेकिन अगर मुद्दाई खुद किसी ओहदे का मुतालबा करे  या सिफारिश कराए तो ये अम्ल ख़िलाफ़े सुन्नत है और इस अम्ल के लिए वाज़े हदीस है !
( हज़रत अबू मूसा अशअरी  रo ताo अनo ब्यान करते हैं ,की मैं और मेरे दो चाचाज़ाद भाई  रसूले खुदा सo अलैहिo वस्o की खिदमत मैं हाज़िर हुए और उन दोनों मैं से एक ने अर्ज़ किया की या रसूल अल्लाह जिन इलाक़ों पर अल्लाह ने आपको हाकिम बनाया है उनमें से किसी इलाक़े का मुझे गवर्नर बनाएं और दुसरे इंसान ने भी इस ही क़िस्म की गुफ्तगू की तो आप ने फ़रमाया " अल्लाह की क़सम हम उस आदमी को कोई ओहदा तफवीज़ नहीं करते जो उसका सवाल करे या उसका लालच करे " )
ओर इस हदीस के बाद वाज़े कर दूँ की मेरा एडजस्टमेंट सिफारिश के ऐतबार से हुआ था ! जिसमें मेरा मुतालबा भी शामिल था जो की ख़िलाफ़े सुन्नत था ! लिहाज़ा दीन की तालीमात पर अम्ल पैरा होते हुए लाज़िम था की मैं अपनी ग़लतियों और गुनाहों का ऐतराफ़ और इज़ाला करूं , और उस ओहदे से इस्तीफ़ा दे दूं जिसका हुसूल मेरी मज़हबी तालीमात के खिलाफ हो चाहे वो कितना ही अहमियत का हामी क्यों न हो ! ओहदे और मर्तबा दुनिया की ज़ीनत हैं क़बर मैं नहीं जाएंगे ! और हम राष्ट्रिय उलेमा काउंसिल मैं उलेमाओं की सरपरस्ती मैं भी अगर  अपने दीन पर नहीं चल सके तो ये हमारे लिए शर्मिंदगी और ज़िल्लत का बाईस है !
मुझे अफ़सोस है की कुछ लोग मेरे इस अम्ल से बदज़न और बदगुमान हुए ! लेकिन ये वही लोग हैं जो दीनी तालीमात और हमारे क़ौमी सदर की तरबियत का फैज़ नहीं उठा पाए हैं ! राष्ट्रिय उलेमा काउंसिल महज़ सियासी तंज़ीम नहीं मदरसा है , जहाँ बशर को इंसान बनने की तालीम और तरबियत दी जाती है ! बदगुमानियां यहां क़याम नहीं करतीं ! हमारी सियासत इंसानी फलाह और आख़िरत के मद्दे नज़र है , महज़ दुनियावी ओहदे हमारा मक़सद नहीं ! और जो इस उसूल का मुनकिर हो वो राष्ट्रिय उलेमा काउंसिल का सिपाही नहीं !
( I am always with Maulana Amir Rashadi )

                              Anwar Durrani

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