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Saturday 30 June 2018

मुस्लिम क़यादत को अपनी अहसासे कमतरी या लाइल्मी के चलते इस तरह से पेश करते हैं की मानो मुस्लिम क़यादत हिंदुस्तान मैं तालिबानी हुकूमत का दूसरा नाम हो !

अफ़सोस होता है जब ना अहल लोग अपनी जुबान मैं क़यादत लफ्ज़ की ग़लत तर्जुमानी करते हैं ! और मुस्लिम क़यादत को अपनी अहसासे कमतरी या लाइल्मी के चलते इस तरह से पेश करते हैं की मानो मुस्लिम क़यादत हिंदुस्तान मैं तालिबानी हुकूमत का दूसरा नाम हो !
दर हकीकत मुस्लिम क़यादत के सही मायने महज़ उस हुकूमत से हैं जिसकी कमान किसी ऐसे मुस्लिम रहनुमा के हाथ मे हो जो दीन और दुनिया दोनों का इल्म रखता हो, जो अद्ल और इन्साफ करने की सलाहियत रखता हो, जो अवाम मैं क़ौम बरादरी नसल और खानदान की बिना पर तफ़रीक़ न करता हो, जो अल्लाह के बताए और उसके रसूल के सिखाए तरीके पर अपनी अवाम को इन्साफ दे , उसकी ज़ेहनी माशी हिफ़ाज़ती और तमाम तरह की हाजतों को उसके सवाल करने से पहले खुद मुकम्मल और पुर करदे , जिसके दिल मैं रहम हो और ज़ुल्म के खिलाफ लड़ने का हौसला , जो नस्ली ऐतबार से किसी को हक़ीर और ज़लील न समझता हो और ऐसे ही किसी को नस्ली ऐतबार से अफ़ज़ल न तस्लीम करता हो, जो इन्साफ करते वक़्त अपने खानदान के फरद को भी उस ही नज़रिए से देखे जो गैर खानदानी के लिए इस्तेमाल करता हो !
मुस्लिम क़यादत के मायने हैं की एक ऐसा निज़ाम जो दलित और ब्राह्मण को एक थाली मे खाने की नसीहत करे , हिन्दू मुस्लिम सिख जैन बौद्ध पारसी और तमाम मज़ाहिब को बराबर नुमाइंदगी दे ताकि उनके नुमाइंदे अपने अपने मुआशरे की तकलीफों को क़यादत के सामने बेबाकी से रखकर उनका हल निकाल सकें और तमाम अवाम हुकूमत के फैसलों से मुस्तफ़ीद हो सके , तालीम जिसका फ़रिज़ाए ऐन हो , और बहिन बेटियों की आबरू की हिफाज़त जिसका अहद हो !
मुस्लिम क़यादत एक ऐसा निज़ाम है जिसमें कोई भूका न सो सके,  काश्तकार यानि किसान को उसकी महनत  का सिला हासिल हो और मज़दूर को उसका पसीना सूखने से पहले उसका मेहनताना !
कया आपको इंनकार है ऐसे हुकूमती निज़ाम से ?
 
उठो नौजवानों हौसला करो और हज़रत मौलाना आमिर रशादी मदनी साहब की क़यादत मैं ज़ुल्म और नाइंसाफी के खिलाफ जंग का हिस्सा बनो तुम्हारा बेहतर मुस्तक़बिल हाथ फैलाए खड़ा है !
      
                           अनवर दूर्रानी
                   राष्ट्रिय ऊलेमा काऊंसिल

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