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Saturday 30 June 2018

परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद को उनकी यौम ए पैदाइश पे खिराज ए अक़ीदत पेश करते हुए।

1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। अब्दुल हमीद को पुनः सुअवसर प्राप्त हुआ अपनी जन्मभूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाने का। मोर्चे पर जाने से पूर्व, उनके अपने भाई को कहे शब्द ‘पल्टन में उनकी बहुत इज्जत होती है जिन के पास कोई चक्र होता है, देखना झुन्नन हम जंग में लड़कर कोई न कोई चक्र जरूर लेकर लौटेंगे।” उनके स्वप्नों को अभिव्यक्त करते हैं। उनकी भविष्यवाणी पूर्ण हुई और 10 सितम्बर 1965 को जब पाकिस्तान की सेना अपने कुत्सित इरादों के साथ अमृतसर को घेर कर उसको अपने नियंत्रण में लेने को तैयार थी, अब्दुल हमीद ने पाक सेना को अपने अभेद्य पैटन टैंकों के साथ आगे बढ़ते देखा। अपने प्राणों की चिंता न करते हुए अब्दुल हमीद ने अपनी तोप युक्त जीप को टीले के समीप खड़ा किया और गोले बरसाते हुए शत्रु के तीन टैंक ध्वस्त कर डाले। पाक अधिकारी क्रोध और आश्चर्य में थे, उनके मिशन में बाधक अब्दुल हमीद पर उनकी नज़र पड़ी और उनको घेर कर गोलों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। इससे पूर्व कि वो उनका एक और टैंक समाप्त कर पाते, दुश्मन की गोलाबारी से वो शहीद हो गये। अब्दुल हमीद का शौर्य और बलिदान ने सेना के शेष जवानों में जोश का संचार किया और दुश्मन को खदेड दिया गया।

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