Breaking

Wednesday 10 October 2018

अवाम का मानना है की क़ायदों का किरदार ही उनकी तवक़्क़ोआत पर खरा नहीं उतरा कोई थक कर बैठ गया , कोई बिक गया , अनवर दुर्रानी

तहक़ीक़ी मुताला रौशनी डालता है की हिंदुस्तान मैं पहली मुस्लिम क़यादत की हामी सियासी तंज़ीम 10 मार्च  सन 1948 को रूनुमा हुई ! और उसके बाद मुतवातिर ये कोशिश जारी रही और नताइज मैं सैकड़ों सियासी तंज़ीमें वुजूद मैं आईं और आज तक ये कोशिश जारी है ! आज भी दो दर्जन से ज़ायद तंज़ीमों को मैदान मैं देखा जा सकता है ! ना फ़िक्र की कमी थी, न जज़्बे की ! न सलाहिय्यतों की कमी थी , न अहतजाज और मुज़हिरों की ! एक से बढ़कर एक अज़ीम शक्सियात, बेहद दिल लुभावन नारे , दिलकश और जज़्बाती  तक़्क़ारीर मन्ज़रे आम पर आईं ! हर चंद कोशिश की गई के मुसलमान मुत्तहिद हो जाएं , सैकड़ों क़ुर्बानियों के बावजूद लेकिन ये हो न सका ! क़ौम टस से मस न हुई, और क़यादत अपना सर सियासत की चौखट पर पटख पटख कर लहू लुहान होती रही , सारा इलज़ाम अवाम के सर रखना भी इन्साफ नहीं क़ायदों ने भी पिछलों की ग़लतियों से सबक़ नहीं सीखा, न नज़रयात मैं कोई तब्दीली की न कारकर्दगी मैं ,और मुक़द्दर के सहारे अपनी अपनी तंज़ीमों को अवाम की बेरुखी और मफाद परस्ती के हवाले कर दिया ! हकीकत यही है की हमारे क़ायद माज़ी मैं भी और दौरे हाज़िर मैं भी बहैसियत एक तबीब के अवाम और उसके अमराज़ की नब्ज़ ही नहीं पकड़ पाए तो इलाज कैसे मुमकिन होता और अगर अवाम की राय को पेश करूं तो अवाम का मानना है की क़ायदों का किरदार ही उनकी तवक़्क़ोआत पर खरा नहीं उतरा कोई थक कर बैठ गया , कोई बिक गया , कोई ऐवानों मैं जाकर बदल गया तो कोई ऐवान मैं गया ही इसलिए की पहले बिक गया ! और गुज़िश्ता चंद सालों से इल्ज़ामे आम है की मुस्लिम क़यादत महज़ फ़िरक़ापरस्त लोगों के लिए दलाल की हैसियत से पैसों के एवज़ मैं काम कर रही है बहरहाल ना ही तो अवाम के रुख मैं कोई तब्दीली का अहसास मुझे हो रहा है और न ही क़यादत की हामी तंज़ीमों के सरबराह माज़ी से सबक़ हासिल करने के मुतामननी नज़र आते हैं , लेकिन आम अवाम और सियासी रहबरों की इस कश्मकश भरी खला के दरमियान एक तब्क़ा ऐसा भी है जो मुस्लिम क़यादत को लेकर इन्तेहाई फ़िक्रमंद है , और मुतावातिर कोशा है की कोई सुरते हाल पैदा हो की क़यादत वुजूद पाए ! अल्लाह उनकी कोशिशों और क़यादत के ख्वाब को कामयाबी अता फरमाए , लेकिन यह जब मुमकिन है की जब क़ायदीन और अवाम दोनों का सियासी क़िब्ला दुरुस्त हो और दोनों तबक़ात सियासत के असल मानी और क़यादत की अहमियत को समझ पाएं और उनकी अना और मिज़ाज उनकी तब्दीली के रास्ते की रुकावट न बने ! मुसलमानों को एक मुआशरे की नज़र से देखना बंद करिये - ये एक उम्मत है और उम्मत का इत्तेहाद किन नज़रयात पर होता है यही न समझ पाना आपकी सबसे बड़ी भूल है !
( ये तहरीर इस्लाह की नियत से वाबस्ता है तंज़-तनक़ीद हरगिज़ मेरा मक़सद नहीं है )
Anwar Durrani

No comments:

Post a Comment